सास के फ़राइज़



सास के फ़राइज़

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हर सास का यह फ़र्ज़ होता है कि वह अपनी बहू को अपनी बेटी की तरह समझे और हर मुआमले में इस के साथ शफ़्क़त व मोहब्बत का बरताव करे अगर बहू से इस की कमसिनी या ना तजरिबा कारी की वजह से कोई गलती हो जाए तो ताने मारने और कोसने के बजाए अख़्लाक़ व मोहब्बत के साथ उसको काम का सहीह तरीका और ढंग सिखाए और हमेशा उसका ख़याल रखे कि यह कम उम्र और ना तजरिबा कार लड़की अपने मां-बाप से जुदा हो कर हमारे घर में आई है इस के लिये यह घर नया और इस का माहौल नया है इस का यहां हमारे सिवा कौन है ? 

अगर हम ने इस का दिल दुखाया तो इस को तसल्ली देने वाला और इस के आंसू पौंछने वाला यहां दूसरा कौन है ? 

बस हर सास यह समझ ले और ठान ले कि मुझे अपनी बहू से हर हाल में शफ़्क़त व महब्बत करनी है बहू मुझे ख्वाह कुछ नहीं समझे मगर मैं तो इस को अपनी बेटी ही समझूगी तो फिर समझ लो कि सास बहू का झगड़ा आधे से ज़ियादा ख़त्म हो गया

📓जन्नती जे़वर 67

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कत्बा अल अब्द खाकसार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रजा़ रज़वी ख़तीब व इमाम सुन्नी मस्जिद हज़रत मन्सूर शाह रहमतुल्लाह अलैहि बस स्टैंड किशनपुर जि़ला फतेहपुर उत्तर प्रदेश

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