औरत को औरत से क़ुरआन मजीद पढ़ना कैसा


सवाल क्या औरत को औरत से क़ुरआन मजीद पढ़ना ग़ैरे मेहरम नाबीना (अंधा) के पास पढ़ने से बेहतर है

अल जवाब औरत को ग़ैरे मेहरम अजनबी अंधे और नाबीना से क़ुरान शरीफ़ पढ़ना और औरत को औरत के पास क़ुरान सीखना यह ज़्यादा बेहतर है बानिस्बत इसके कि वह किसी अंधे से क़ुरान सीखे इसलिए कि औरत की आवाज़ भी औरत है अगरचे वह उसे देखता नहीं मगर आवाज़ तो सुनता है

अल्लामा इब्ने आबिदीन शामी क़ुद्दिसा सिर्रहुस्सामी तहरीर फ़रमाते हैं

अरबी इबारत असल किताब में मुलाहिज़ा हो

📚 रद्दुल मोहतार, जिल्द 2, सफ़ह 47)

और इसी में है

رفع سوتهن حرام

यानी औरतों को अपनी आवाज़ बुलंद करना हराम है, (के ग़ैरे मेहरमों तक पहुंचे) 

📗 अल मरजउस्साबिक़)

और अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है

आयते करीमा क़ुरआन मजीद पारा 18, सूरह नूर आयत 31) में देखें

यानी जब औरतों को अपने पैरों के ज़ेवर की आवाज़ अजनबी मर्दों को सुनाना हराम है तो अपनी आवाज़ ग़ैर मेहरमों तक पहुंचाना बदर्जाए ऊला हराम होगा कि इससे मिलान और ज़्यादा होगा जो बड़े बड़े फ़ित्नों का बाइस होगा इसलिए शरीयत के ने औरतों को अज़ान तक देना नाजाइज़ ठहराया है

और मुजद्दिदे दीनो मिल्लत सरकार आलाहज़रत अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं

औरत की आवाज़ भी औरत है

📚 फ़तावा रज़वियह जिल्द 9 सफ़ह 122 निस्फ़ आख़िर)

और फ़क़ीहे आज़म मुसन्निफ़े बहारे शरिअत हुज़ूर सदरुश्शरिअह अमजद अली आज़मी अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं

औरत को औरत से क़ुरान मजीद पढ़ना ग़ैरे मेहरम नाबीना से पढ़ने से बेहतर है कि अगरचे वह उसे नहीं देखता मगर आवाज़ तो सुनता है और औरत की आवाज़ भी औरत है

(यानी औरत का ग़ैर मेहरम को बिला उज़्रे शरई आवाज़ सुनाने की इजाज़त नहीं)

📚 बहारे शरिअत जिल्द 1 सफ़ह 552)

लिहाज़ा हमें चाहिये के किसी नेक सालेह सनियह औरत से अपनी बच्चियों को तालीम दिलवाएं, और मर्दों से अगरचे वह नाबीना (अंधा) ही सही हत्ताउल इम्कान अपनी औरतों को और बालिग़ा लड़कियों को दूर रखें

📔 औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह.119--120--121)

कत्बा अल अब्द खाकसार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रजा़ रज़वी ख़तीब व इमाम सुन्नी मस्जिद हज़रत मन्सूर शाह रहमतुल्लाह अलैहि बस स्टैंड किशनपुर जि़ला फतेहपुर उत्तर प्रदेश

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