मस्जिद में ताक़ भरना कैसा है


सवाल

अक्सर औरतें त़ाक़ भरने मस्जिद में चिराग जलाने और कूंडा वग़ैरह करने की मन्नत मानती हैं, रत जगा होता है, और औरतें इकट्ठा होकर गाती बजाती हैं, तो क्या हुक्म है

अल जवाब बिऔनिल मुल्किल अल वहाब 

इस तरह की मन्नतों के बारे में शरअन कोई मुमानअत नहीं, करे तो अच्छा है और ना करे तो कोई बात नहीं, मगर औरतों का इकट्ठा होकर गाना बजाना और त़ाक़ भरने के लिए रत जगा करना नाजाइज व हराम है

बहारे शरिअत में है

मस्जिद में चिराग जलाने या त़ाक़ भरने (यानी मस्जिद या मज़ार के त़ाक़ में चिराग जलाक़र फूल वगैरह चढ़ाना) या फलां बुज़ुर्ग के मजार पर चादर चढ़ाने या 11वीं की नियाज़ दिलाने या गौसे आज़म रजिअल्लाहू तआला अन्ह का तोशा या शाह अब्दुल हक़ रजिअल्लाहू तआला अन्ह का तोशा करने या हज़रत बिलाल बुख़ारी का कूंडा करने या मोहर्रम की नियाज़ या शरबत या सबील लगाने या मिलाद शरीफ़ करने की मन्नत मानी तो यह शरई मन्नत नहीं, मगर यह काम मना नहीं हैं करे तो अच्छा है, हां अलबत्ता इसका खयाल रहे कि कोई बात ख़िलाफ़े शरअ् उसके साथ ना मिलाए, मसलन ताक़ भरने में रतजगा होता है, जिसमें कुन्बा (यानी खानदान) और रिश्ता की औरतें इकट्ठा होकर गाती बजाती हैं कि हराम है, या चादर चढ़ाने के लिए बाज़ लोग ताशे बाजे के साथ जाते हैं यह नाजायज है, या मस्जिद में चिराग़ जलाने हैं मैं बाज़ लोग आटे का चिराग़ जलाते हैं, यह ख्वाह मख़्वाह माल ज़ाएअ (बर्बाद) करना है और नजायज है मिट्टी का चिराग़ काफी है और घी की भी ज़रूरत नहीं मक़सूद रोशनी है वह तेल से हासिल है, रहा यह के मिलाद शरीफ़ में फर्श व रोशनी का इंतज़ाम करना और मिठाई तक्सीम करना या लोगों को बुलावा देना और उसके लिए तारीख़ मुकर्रर करना और पढ़ने वालों का खुशुल्हाफ़ी से पढ़ना यह सब बातें जाइज़ हैं, अलबत्ता ग़लत और झूटी रिवायतों का पढ़ना मना है, पढ़ने वाले और सुनने वाले दोनों गुनाहगार होंगे,

📚 बहारे शरीअत जिल्द 2 सफ़ह 317)

📔 औरतों के जदीद और अहम मसाइल, सफ़ह 64//65)

✍🏻 अज़ क़लम 🌹 खाकसार ना चीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)


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