✿➺ सुवाल
क्या बाप अपनी बेटी और शोहर अपनी बीवी को नमाज़ पढ़ने को कहै या पर्दा करने को कहै पर वो कभी तो हुक्म माने और कभी नहीं तो ऐसे मे शोहर गुनहगार होगा या फिर शोहर को अपनी बीवी को तलाक़ देना वाजिब है क्या बीवी और बेटी बात ना माने फिर वो शख्स की कोई इबादत कुबूल नही
❀➺ जवाब
जो सूरत आपने ब्यान फरमाई है उसमे तलाक़ देना वाजिब नही, इन मर्दो को चाहिए की इनसे नाराज़गी ज़ाहिर करे, यानी शोहर अपना बिस्तर अलग कर लें, ना साथ खाए ना पिए, और ज़रूरत हो तो हल्की मार से मार भी सकता है, की बदन पर निशान ना पड़े, की मर्द औरत का हाकिम है और गुनाह से रोकने पर क़ादिर भी होता है, लिहाज़ा गुस्से और सख्ती से भी काम लिया जा सकता है, ताकि नमाज़ की पाबंद बने और शरई पर्दा करे, और ये इस सूरत मे मुमकिन होता है जब शोहर खुद भी शरीअत का पाबंद होता है, नमाज़ वगेरा पढ़ता है और घर मे टीवी जैसा फितना नही होता, क्यूंकी गाना, दिल मे निफाक पैदा करता है।
📔 इहिया उल उलूम, जिल्द:2, सफा:182 पर है अगर सरकशी ख़ासतोर पर औरत की तरफ से हो मर्द अफ़सर है औरत पर, उसे इख्तियार है की वो उसको अदब सिखाए, और ज़बरदस्ती उसे इता'अत पर मजबूर करे, इसी तरह अगर औरत नमाज़ ना पढ़ती हो तो भी मर्द को इख्तियार है की वो उसे ज़बरदस्ती नमाज़ पढ़ने पर मजबूर करे।
📚ह़वाला पर्दादारी, सफा नं.77
✒️मौलाना अब्दुल लतीफ नईमी रज़वी क़ादरी बड़ा रहुवा बायसी पूर्णियाँ बिहार
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