जन्मदिन मनाना नेज़ उसकी मुबारकबादी देने का शरई हुकुम

 ग्रुप रज़ा कमेटी सेमरबारी दुदही कुशीनगर

                         



सवाल 


बाद सलाम के अर्ज़ ए खिदमत यह है कि किसी के जन्मदिन पर उसको मुबारकबाद देना कैसा है जो लोग बर्थडे पार्टी मनाते हैं उसमें शरीक होना कैसा है जवाब इनायत फरमाए नवाजीश होगी❓


जवाब 


अगर उस शख्स की जिंदगी का गुजरा हुआ हिस्सा दिलदारी परहेज़गारी शरीयत की पासदारी. अल्लाह ताला और उस के नबी ए मुकर्रम सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम की फरमाबरदारी में गुजरा है तो उसे मुबारकबाद भी पेश करें और जशन भी मनाए कोई हर्ज नहीं कोई पाबंदी नहीं अल्लाह की नेमत पर तो खुशियां मनाने ही चाहिए कि अल्लाह ताला ने उसे इस्लामी जिंदगी गुजारने की तौफीक अता फरमाई जो दिनदार के रास्ते पर चलने की कोशिश करता है अल्लाह ताला उसके लिए रास्ता आसान फरमा देता है (لیس للانسان الا ماسعی) अगर उसकी जिंदगी का पिछला हिस्सा यूं ही मनचाहा गुजरा है तो उसके लिए तीमारदारी (हमदर्दी) पेश फरमाएं मुबारकबादी नहीं


और आइंदा के लिए रूहानी तवानाई और ख्वाहिश नफस की मग़लुबी के लिए दुआ करें. ताकि आइंदा आने वाले लम्हात में अल्लाह ताला और उसके हबीब ए पाक साहिबे लोलाक हुजूर सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम की मर्जी के मुताबिक उम्र का बकिया हिस्सा गुजार कर अपनी दुनिया व आखिरत को हसीन व खूबसूरत बना सके........


📚 (मांखुज़ ; फतावा ए गौसिया जिल्द 1 सफा 323)


अब रहा सवाल यह कि उसको मनाना और उसमें शरीक होना कैसा है ?


तो जवाब यह है कि योमें पैदाइश मनाना जायज है जबकि यह तक़रीब ममनुआते शरईया मसलन बे परदगी मौसीक़ी. गाने . बाजे . अजनबी मर्दों औरतों का एखतिलात तालियां वगैरहा गुनाहों से पाक हो तो उस में शरई तौर पर कुछ हर्ज नहीं और बेहतर यह है कि जिक्र व दुरूद और तिलावते कुरान व कसरत ए नवाफिल की अदायगी की सूरत में शुक्र बाजा लाया जाए


जैसा कि हजरत अल्लामा मुफ्ती मोहम्मद अनस रजा अत्तारी साहब किबला तहरीर फरमाते हैं ⤵️


की हर साल पैदाइश व शादी की सालगिरह मनाते हैं और उन मौकों पर केक काटने का रिवाज है और बाज़ जगह तो ईद मिलादुन्नबी सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम के मौका पर भी केक काटा जाता है इन तीनों मौके पर केक काट सकते हैं {لعد المنع الشرعی} यानी शरअ में ऐसा काम करने पर कुछ मुमानअत नहीं जब की शरीयत के दायरे में रहते हुए हो. मोरवजा आवामी तरिक़ा पर ना हो कि जो तालियां म्यूजिक व बे परदगी की जैसे कई गैर शरई कामों पर मुश्तमिल होती है नेज़ हमारे उलमा ए किराम फरमाते हैं की सालगिरह वक्त ए खुशी नहीं बल्कि वक्त ए फिक्र है कि उसकी जिंदगी का 1 साल गिर गया है


📚 (माखूज़ ; रस्मो रिवाज की शरई हैसियत सफा 160)



✍🏻 हिंदी ट्रांसलेट मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी सेमरबारी (दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)

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